श्रेष्ठ होकर श्रेष्ठता का आज परिचय दे गए।
उम्र के सारे अनुभवों को आज साझा कर गए।
कुछ निशानी दे गए अपने इस तरह किरदार की।
भूल पाना अब है मुश्किल ऐसी बात कर गए।
अपने बिछाये जाल में नित कामयाब होते गए।
हर बात पर अश्रु बहाकर मासूम रोज बनते गए।
जिनको समझकर देवता हम पूजते शुभ शाम थे।
वह निकृष्ट होकर देवता से आज दानव हो गए।
छल कपट ईर्ष्या से परिपूर्ण जिनका जीवन रहा।
शब्द ऐसे-ऐसे कहें कि उर भी घायल हो गया।
अग्रज हमारे कुल के हम जिन्हें मानते सर्व्श्व थे।
सुनकर उनकी बात मैं बच्चें से नौजवां हो गया।
कह रहे है हक जताओ सब तुम्हारा ही तो हैं।
यह धरा आकाश नीला जीवन तुम्हारा ही तो हैं।
हम कहा कहते है कि यह तुम्हारा था ही नही।
नित नये षडयंत्र रच आश्वासन हम देते तो हैं।
जो विचार आया ही नही वह भी बतलाकर चले गये।
सर से पिता का साया हटा था एहसास कराकर चले गये।
पाप भरा उर में कितना है मुझको तो कुछ ज्ञात नही।
अपनत्व दर्मियां कितनी है यह बोध कराकर चले गये।
स्वरचित एवं मौलिक रचना
नाम:- प्रभात गौर
पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश