मैं विकसित हो हम बन जाए, सेवक ध्वजा रहे ।
एकमना बहुजन हो जाएँ, सन्मति नित्य गहें ।
क्षैतिज पट्टी ज्ञान सुरभिता, एकल मन्त्र यही ।
केसरिया बल साहस देता, पावन धवल वही ।
रंग हरित नव प्रेरण भरता, तीली चक्र गुणी ।
संघ मेल मनशुद्धि सिखाता, करुणा धर्म ऋणी।
हिन्द संग सब देश बढ़ेंगे, प्रेमी भुवन सभी।
अस्मित खोती हीन भावना, शोषण हो न कभी।
देशी खादी करें प्रणामा, सत्यहिं धर्म कहे ।
व्योम जलधि देते हम माना, नीला वर्ण रहे ।
गीतोपनिषद ज्ञान संहिता,नियमित कर्म करें ।
एक आत्म हर जींव विराजे, मैत्री सरल धरेंं।
निज सम्प्रभुता करती रक्षा, सबकी मुक्ति शुभी।
सहजीवन समता सिखलाए, असाम्य दूर तभी।
शुद्ध शांत हम ध्वज फ़हराएँ, ऊँचे लक्ष्य रहें।
अमृत उत्सव हित चिंतन में, व्रण को सतत सहें।
@ मीरा भारती।
पटना,बिहार।