ख्वाहिश थी मेरी..एक अदद मुलाक़ात को ,
पलटकर देखा जो उसने तो आदाब हो गया !
मैं खड़ा ही रहा..ये उससे पूछता पूछता ,
जब उसने नज़रें झुकाई तो जवाब हो गया !
फ़लसफ़ा पढ़ता रहा.. फकत सपा दर सफा,
उसने वो जो लिख दिया तो किताब हो गया !
मैंने उम्र गुजारी..उनके बेहिसाब इंतज़ार में ,
वो मुस्करा दिए बस यूं तो सब हिसाब हो गया!
एक मुद्दत से तरसा..मैं अपनी पहचान को ,
उसने मेरा नाम लिया तो खिताब हो गया !
दिल से मैंने ये चाहा भी..कि भुला भी दूं उसे ,
ये सोचते ही दिल मेरा , मेरे खिलाफ हो गया !
भटकता रहा ताउम्र..उसके दिल के इर्दगिर्द ,
बाद उसके इकरार के , "राज़" आबाद हो गया !
राज़ सोनी
सीकर ( राजस्थान )