आषाढ़ आ गई

कहते है आषाढ़ में

पुरानी चोट बहुत दर्द देती है,

और आज तुम्हारी याद आते ही

सारे दिए तुम्हारे जख्म भी ताजा हो गई,


कतरा-कतरा माह पल छीन

अभी भूल ही पाई थी तुम्हे

लो फिर से ये......

आषाढ आ गई।


तुम्हारे दिए जख्मो से तपिस

हुआ जो मेरा मन था,

उसे बुझाने साथ मे ये

भींगी बरसात आ गई,

लो फिर से ये.....

आषाढ़ आ गई।


भींगा भींगा ये मदहोश समा है

उसमे रंगीन झरोखों को

फूलों में समाया है

मानो उतरा हो आज

ये आसमा का सितारा

अभी कुछ पल रौशनी हुई ही थी

मेरे इस झरोखे में और

तुम्हारी याद आ गई,

लो फिर से ये....

आषाढ़ आ गई।


किसे बताऊ,किसे जतायु

हाल अपने दिल का मैं

अभी एक अजनबी ने

दस्तक दिया ही था मेरे मन पे

तभी तुम्हारी यादों की बारात आ गई,

लो फिर से ये...

आषाढ़ आ गई।


-- लवली आनंद

मुजफ्फरपुर , बिहार