नाम के उसके चाह मुझे

दो वक्त की रोटी चाहिए,

ना ज्यादा की चाह मुझे,


मैं तो वक्त  का मार हूँ,

ना और किसी की चाह मुझे,


तन ढ़कना है ज़मीं पर रहकर,

ना मौसम की परवाह मुझे,


प्यार से कोई दुःख जान ले मेरे,

ना दौलत की अब चाह  मुझे,


मेरा तो बस जो भी अब यही है,

ना अब चाहिए कोई साथ मुझे,


तंग हाल से गुजर कर आया हूंँ,

ना महलों की कोई आस मुझे,


मिल जाए दो जून की रोटी यहांँ,

ना ज्यादा पकवानों की चाह मुझे,


है  सब में बसता है वो दातार,

उसके नाम की बस चाह मुझे,


जीवन संवर जाए नाम से उसके,

बस दिल में यही अब चाह मुझे,


रचनाकार

रामेश्वर दास भांन

करनाल हरियाणा