जगन्नाथ जी

मेरे देव जगन्नाथ,रथ पर आओ मेरे ग्राम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


संग बहन सुभद्रा को भी लाना,

बलदेव दाऊ का प्यार है पाना।

तुम बिन कहाँ इस जोगन को आराम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


सब धाम से बढ़कर पूरी धाम,

भ्रमण को निकले प्रभु,सुभद्रा,बलराम।

मौसी के गृह गुंडिचा में किया विश्राम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


12 दिनों की रथ यात्रा होती है निराली,

काष्ठ निर्मित मूरत लगती अति प्यारी।

निज कर लगाकर जाऊँ मैं पुरधाम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


पीछे नन्दीघोष,मध्य पद्द्म,तालध्वज पर बलराम,

द्वापर अवतारा कर्म पूजा अभिराम।

मोहिनी मुरतिया निहारूँ घनश्याम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


सारथी बन भवसागर पार लगाओ,

मुझ मूढ़ को ज्ञान का पाठ पढ़ाओ।

तुमसे ही मेरी पूजा,तुम हीं चारों धाम,

तेरी पुजारिन माँगे आशीष सुबह-शाम।


                   रीमा सिन्हा

               लखनऊ-उत्तर प्रदेश