दुनिया कहती भीड़ है, लगता मेला आज |
ह्रदय बसाओ राम जी , पूरे होते काज |
पूरे होते काज, बसे उर जिनके ईश्वर |
मिलता कृपा प्रसाद, वही है वो जगदीश्वर ||
कहती स्वप्निल आज,जान लो सारी बतिया |
करता योगी ध्यान,खोजती सुख सब दुनिया ||
माया उल्टा वृक्ष है, फँसा रहे संसार |
दुनिया मेला एक है, इससे बचना यार ||
इससे बचना यार, समझकर घूमो मेला |
घृणा द्वेष भटकाव, मनुज जीवन का खेला ||
मानो स्वप्निल बात,क्षणिक है मानव काया |
ह्रदय बसाओ राम, उसी की है सब माया ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश