वह ग़रीब भूख का सताया फिरता है

कर्ज़ ज़िंदगी के वह उठाया फिरता है,

बिन बात के भी वह लजाया फिरता है।


वादा फ़रोख़्त नेता खायें छप्पन भोग,

वह ग़रीब भूख का सताया फिरता है।


चश्म ए तर में छुपा लेता है ग़म अपने,

हँसकर हर बोझ उठाया फिरता है।


परवाह ए आक़िबत उसे नहीं रहती है,

हाथ मदद की वह बढ़ाया फिरता है।


बीत जाती ज़िंदगी ज़ुल्मत में 'रीमा'

राह में चराग़ सबके जलाया फिरता है।


                  रीमा सिन्हा (लखनऊ)