मानव मन के गहन गह्वर में
अनुभूतियों का एक सागर है।
कभी स्वप्निल रत्न यहाँ,
कभी दुःख संताप का गागर है।
मेरे जीवन की सबसे सुखद अनुभूति,
जब नन्हीं कली मेरी गोद में आयी,
कोमल कपोल,मुख अनुरंजित
दृग मुक्ता मेरी बह आयी।
संपूर्णता का एहसास हुआ मुझको,
संग उसके मैं बचपन में वापस आयी।
यूँ ही,नित नयी अनुभूति लिये,
जीवन पथ पर बढ़ रही हूँ।
कागज़ पर उकेर शब्दों को,
हर रोज़ कविता गढ़ रही हूँ।
बिन अनुभूति अकल्पित ये जीवन है,
अनुभूति ही तो उर स्पंदन है।
रीमा सिन्हा (लखनऊ)