ये मेरा मन कर रहा है

यूँ ही बैठे बिठाए, पता नहीं

क्या- क्या करने का, मेरा मन कर रहा है l

एक बार जी लूँ, गुजरी जिंदगी

जो पहले बीत चुकी वो

दोस्तो! ये मेरा मन कह रहा है l


सुबह- सुबह, तैयार, हो के मैं

खिलती- खिलाती जाऊँ,फ़िर से स्कूल

हाथ में वो ही, बोरी वाला बैग हो,फ़िर से तैयार

मास्टर जी और बच्चों से हो, पहले वाला प्यार 

बस यही सब करने का, दिल कर रहा है l


पहले जैसे मिल जाए, मूझे वो आजादी

जैसे गरीबी में भी रहती थी, बन शहज़ादी

कभी छू ना पाते थे, तक्लीफ आती जाती

क्योंकि मम्मी- पापा, का पहरा

 रहता था उन पर हरदम

अगर कुछ भी होता तो प्यार से वो कर देते थे कम

बस वही सब, करने का मन कर रहा है l


कोई फिकर, ना फाका, बस मस्ती ही मस्ती थी

ऐसा लगता है, उस समय, खुशी कितनी ,सस्ती थी

आज सारा सारा दिन, बीत जाता है,घर के झमेले में

बच्चे जाते स्कूल, पति पैसे कमाने के मेले में

अकेले, बैठे- बैठे सोच, मन पागल सा रहता है 

इसलिए लौट चलूँ पीछे, ये मेरा मन कर रहा है  l


करमजीत कौर,शहर-मलोट

जिला-श्री मुक्तसर साहिब, पंजाब