ज़ख्म गहरे दिए तुने मुझे जुदाई के,
अब मिलुं भी तो किस हक से तुझे,
मेरे पांव में बेड़ियां डाल दी तुम ने,
दिखा कर ज्ञअपनी नफ़रत को मुझे,
ना दूर हो मुझ से तो अच्छा होगा,
लगा दिल मुझ से तेरा भी भला होगा,
ये बेड़ियां मेरी तोड़ कर पुकार ले मुझे,
मेरा दिल तरसता है देखने को तुझे,
नफ़रत को निकाल फैंक दिल से अपने,
प्यार भी जता इस दिल से अपने,
तड़पता हूंँ तुझ से मिलने को एक बार,
तूं भी कोशिश तो कर मिलने की मुझे,
आसान सा सफ़र बना अपना और मेरा,
साथ देकर निभा दे साथ मेरा,
शुक्रगुजार रहूंगा उम्र भर मै तेरा,
जो दिल में नफ़रत है उसको मिटा दे ज़रा,
रामेश्वर दास भांन
करनाल हरियाणा