इसमें तुम कहाँ हो?

क्यों नहीं करती रोपनी

तुम्हारी बीबी- बेटियाँ

तुम्हारे बेटे बहुएँ 

क्यों नहीं करते तुम भी रोपनी?


तुम्हारा ही तो खेत है

तुम्हारे पास भी पेट है

फिर 

तुम भी करो रोपनी

और रोपनी के गीत गाओ

सुनाओ और दिखाओ।


खाते तो तुम भी हो उस धान से

निकले चावल के दाने 

जाओ समझो मेहनत के मायने

महसूस करो कमर का दर्द

कभी गुजारा कर के दिखाओ 

उस बनिहारी में जो देते हो इन्हें

नहीं हो पायेगा तुमसे यह?


किसान जरूर बने रहोगे

बैंक का किसान ऋण हपचते रहोगे

संवेदना बटोरते रहोगे

इन्हीं मजूरों के नाम पर

चाहता हूं मैं जिस रोपनी गीत को

पोस्ट किया सोशल मीडिया में तुमने

संस्कृति के नाम पर

श्रम गीत बतला कर

उसमें तुम भी दिखो

और दिखे तुम्हारा पूरा परिवार

करते हुए रोपनी

और गाते हुए रोपनी का गीत।


-- संतोष पटेल

नई दिल्ली