( 1 )
आज दिल के अंधेरों में एक धूप सी निकली है ,
एक सूरज चहलकदमी करके जो गुजरा यहां से !!
( 2 )
हूं अगर मैं धूप, और तुम सूरज जहान के ,
तो दर-दर इन अंधेरों में भटकना क्यों है !!
( 3 )
बड़े नाजों से पाले हैं तुमने "कंक्रीट के जंगल" ,
आज इस धूप की चुभन से ये शिकायत कैसी !!
( 4 )
एक ही धूप में हमारी छांवें अलग ही रहीं ,
तेरे हिस्से में चुभन, मेरे हिस्से में प्यास थी !!
( 5 )
लोग आते रहे, और चुगते रहे आंगन की धूप ,
मगर हमने सांझ साथ निभाने का वादा किया !!
( 6 )
भले ही धूप के किस्से रहे हों कैसे भी आजीवन ,
मेरे मन के सूरजमुखियों ने उसे चम्पई ही कहा !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश