गिद्धों का रोना

शवों को शारीरिक रूप से खाने वाले मुर्दाखोर पक्षी गिद्ध कहलाते हैं, वहीं मानसिक रूप से खाने वाले नेता नरभक्षी कहलाते हैं।  नेताओं की चाल के आगे गिद्धों के चारों खाने चित है। भारतीय गिद्ध तो लुप्तप्राय होते जा रहे हैं। अब उन्हें अपने ही नर संस्करण से होड़ मोल लेना पड़ रहा है। एक दिन इन गिद्धों को लगा कि लुप्त होने से पहले दुनिया भर में फैले अपने सगे संबंधियों से भेंट कर लेना अच्छा होगा। न जाने कब उनकी ईहलीला समाप्त हो जाए। इसलिए उन्होंने दुनिया भर के गिद्धों को संदेशा दे भेजा। अमेरिका से कॉण्डर वल्चर, किंग वल्चर, कैलिफोर्नियन वल्चर, ब्लैक वल्चर, तुर्की से टर्की बज़र्ड. अफ्रीका और एशिया से राजगिद्ध, काला गिद्ध, चमर गिद्ध, बड़ा गिद्ध, गोबर गिद्ध सभी उपस्थित हुए।

सभी ने भारतीय गिद्धों के लुप्त होने पर चिंता जताई। कहा - कत्थई और काले रंग के भारी कद के हमारे भारतीय गिद्ध भाई, जिनकी दृष्टि कभी बहुत तेज हुआ करती थी। जिनकी चोंच टेढ़ी और मजबूत हुआ करती थी, लेकिन पिछले कुछ वर्षों से नरभक्षी रूपी इसानी गिद्धों के आगे ये टिक नहीं पा रहे हैं। इनका झुंडों में रहकर मुर्दाखोर बना रहना सबसे मुश्किल है। इन सूखे-भूखे गिद्धों को देखकर हमें शर्म आ रही है। ये कई दिनों से भूख से बदहाल हैं। कहीं कोई लावारिस लाश नहीं मिल रही है। काफी खोजबीन के बाद भोजन की जुगाड़ न होने कारण हमीं सभीको मिलकर इसका कुछ न कुछ उपाय करना चाहिए। इसलिए गिद्धों की सभा आयोजित की गई। बीबीसी समाचार देखेने वाले एशियन किंग वल्चर ने कहा - “अगर इसी प्रकार चलता रहा तो हम लोग जल्द ही भूख से तड़प-तड़प कर मर जाएँगे। कुछ न कुछ उपाय करने चाहिए।" सब युक्ति निकालने लगे। आखिरकार गिद्धों के मुखिया ने ही समाधान निकाला। कुछ गिद्ध रात में छिपते-छिपते गए और शहर की बस्तियों में जगह-जगह लगी मूर्तियों को अपनी चोंच और पंजों से खंडित कर आए। जो काम जोड़ गुणा से नहीं हो सकता था वह लड़ने और आग में घी डालने से संभव हो पा रहा था।

आखिरकार गिद्धों ने देश के नेताओं से सबक लेते हुए अगली सुबह मंदिर-मस्जिद की ओर दौड़े। मंदिरों के पास गोमांस और मस्जिदों के पास सुअर का माँस फेंक दिया। दो अलग-अलग समुदायों में जमकर घमासान हुआ। तमाम लाशें गिरीं। भारतीय गिद्ध खुश। अब वे जमकर जी रहे हैं। अब देश के गिद्ध कभी भूखे नहीं रहते। उन्हें समाधान मिल गया है। वे इंसानों की तरह जीना सीख चुके हैं।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657