क्षितिज तलक परचम लहराकर
गीत नया हम गुनगुनाएंगे
अरमानों के पंख फैलाकर
व्योम को भी हम नाप जाएंगे
अपने कदमों के निशां बनाकर
ऊंचें पर्वतों को भी नाप आएंगे
असीम सागर की गहराई छूकर
एक अलग इतिहास बनाएंगे
अमृत कलश कहीं से ढूंढकर
अपनी धरा को स्वर्ग बनाएंगे
चारों तरफ फैले खुशहाली
एक ऐसा जहां हम बनाएंगे
आनंद बरखा सब पर बरसाकर
गम की चादर को ढक जाएंगे
अरमानों के पंख फैलाकर
गीत खुशी के हम गाएंगे
हृदयों से कलुषता को मिटाकर
वहां स्नेहिल भाव भर जाएंगे
कोई दीन दुखी ना रहे जगत में
यही अरमानों के पंख लगाएंगे
स्वरचित एवं मौलिक
अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश