आओ न रिमझिम बारिश में बात करें।
आओ संग चलो न बूंदो से मुलाकात करे।
गुमसुम क्यों बैठ हो आओ ना,
रिमझिम अंबर को निहारो जरा।
रूठने में क्या रखा है सुनो ना ,
संगहवाओं के खिलखिलाएं ना।
बहारों से खूशबू का लुत्फ उठाओ न,
देखो काले मतवारे बादल तुम्हें बुलाते।
चलो आओ बचपन की तरह,
मिलकर बादलों के पीछे भागते हैं ।
गरजते बादलो को देखो जरा,
बिजली सनम गिरा रहे हो।
आओ हाथ फैलाकर झूमे,
उन्मुक्त हवाओं को हमें चूमे।
खिलखिलाती फिज़ा बुला रही,
बारिश की रिमझिम बूंदें बुला रही।
आओ न थोडा इनसे मिल लो
यूँ कब तक रूठोगी,,भला।
थोड़ा सा खुद को निहारे,
प्यार भरी बातों की शुरुआत करें।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा