"प्यार की डिगरी..."

मेरे पास है प्यार की 'डिगरी'  । 

फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।।

          मेरे पास है प्यार की 'डिगरी' । 

          फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।।


लिखकर लाया हूँ 'लब लेटर ' ।

क्यों भगाया मुझे धक्का देकर ।।

            मिलती है मुझको 'लब' का 'पेंन्शन'। 

            फिर  क्यों  होगी  खर्चे  की  'टेंन्शन'।।


आजा मेरी बाहों में मेरी रानी ,

बसाएंगे हम 'लव' की नगरी । 

            मेरे पास है प्यार की डिगरी ।

            फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।। 


यू आर यू आर ब्यूटीफुल । 

'लव गार्डन' से लाया हूँ फूल।। 

             मैं  तेरे  लब  का  'काँक'  हूँ.....। 

             समझ न मुझको इडियट फुल ।। 


तेरे 'आइज' और मेरे 'आइज', 

आपस  में  यूं  ही  टकराई ...।

           मेरे पास है प्यार की डिगरी। 

           फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।। 


तेरे 'हार्ट' में डब्बल 'हाँट' है , 

नजर में करेंट का शाँक  है । 

           छुना  है  इसको  मना  यारों  ,

           प्यास लगी तो जल भरी पाँट है ।। 


आ जाओ इश्क़ की लायन में , 

बिछा  दूं  मैं  दिल  की  पटरी ।

             मेरे पास है प्यार की डिगरी  ।

             फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।। 


ओ माई लवर ओ माई लब  ,

मैरिज के बन्धन में बंधेंगे  कब ।

              बन जाएगी हमारा प्रेम लायब्रेरी , 

              पढ़ेगें प्रेम लोक में दुनियादारी सब ।। 


कहीं पर गज़लों की महफ़िल होगी , 

कहीं बनेगी प्रेम ग्रन्थ की लब स्टोरी ।

               मेरे पास है प्यार की डिगरी  ।

               फिर क्यों महबूब मेरी बिगड़ी ।।


स्वरचित एवं मौलिक

मनोज शाह 'मानस'

manoj22shah@gmail.com