राम अतुल जैसा नहीं, कोउ अयोध्या धाम ।
मनमोहक क्रीडा करे ,भाये सब को राम।।
पग धरते होती कभी, पैंजन की झंकार।
कौशल्या, दशरथ कहे ,बजे नाद ॐकार।।
नैनन में अंजन भरे, देखे इत उत पार।
माँ करती अनुराग तो ,तात करे मनुहार।।
भाल तिलक से है सजा ,अरुनारे हैं ओंठ ।
मुस्काते प्रभु मंद से, पहन कमर में गोंठ।।
पहिराई तनु आभरण, बिचरनि पाणी,रान ।
मोह मुझे पल-पल रहा, करते हुए बखान।।
जो भी भजता राम को, मिलता प्रभु का साथ ।
डूबे नैय्या भव नहीं, जब हो प्रभु का हाथ।।
प्रज्ञा देवले✍️