नदियां नीर बहाओं,
दुख जंजाल मिटाओ,
रोग-दोष-पीड़ा हर लो,
मानव मन हर्षाओं,
शीतल जल, कलकल,
छलछल राग रागिनी गाओ
प्रेम गीत विरह-मिलन की
गाथाऐं नई तुम रोज गाकर,
गुनगुना कर तनमन में प्रिय मिलन,
बिछड़न की तरन्नुम लहराओ,
कलियां मन मसोसती रह गई,
पत्तों से यह कहकर सो गई,
कब तक जागोगे तुम सब,
तेरी नदियां भागती रह गई,
उसको तो है जागते रहना,
अब तुम सो जाओ बहना,
गीत सुनो तुम नदियां का और
खो जाओ, मैं जागूं तुम सो जाओ!
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-नेहा ठाकुर, इंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070