बंधन बाँधे प्रेम का, जगते सारी रैन ||
आँखे बातें जब करे,दिखती चंचल झील|
उतरे दिल में बाँवरा, प्यारा मोहक नील ||
आँखे गहरी झील सी,जाता मन है डूब |
दिखता मुखड़ा लाल है,बोले सब है खूब ||
सागर जैसी आँख है, इन पर हमको नाज |
गम के बादल पोंछती,खोले सारे राज ||
झरते मोती आँख से, बसती जब है पीर |
दर्पण मन का है यही, जैसे निर्मल नीर ||
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कल्पना भदौरिया "स्वप्निल"
लखनऊ
उत्तरप्रदेश