सुंदरवन में आम का वृक्ष था। उस वृक्ष पर मधुमक्खियों का बहुत बड़ा छत्ता था।
उसमें सोनी नाम की एक मधुमक्खी रहती थी।
सोनी को सुबह उसकी मां ने शीशी दी और पराग लाने को कहा।
उड़ते उड़ते सोनी एक मैदान में आई ,वहां ऊंची हरी घास उगी हुई थी घास पर एक कीड़ा झूल रहा था।
सोनी को देख कर खुशी से झूम कर बोला
सोनी सोनी आओ ना आओ ना।
चलो 'हम थोड़ी देर आंख मिचोली खेलते हैं।'
कीड़े ने सोनी को पुकारा!
सोनी ने कहा' नहीं नहीं भाई मुझे बहुत काम है मुझे तो अभी पराग लेने जाना है"
कीड़ा बोला आओ ना सोनी "बस थोड़ी देर ही खेलेंगे सिर्फ 10:15 मिनट मेरी बात मान जाओ ना।"
सोनी ने भी खेलने का मन बना लिया और वह खेलने के लिए लालायित हो गई।
पहले तो कीड़ा घास में छिप गया और सोनी उसे ढूंढने लगी।
फिर सोनी फिर कीड़ा ऐसे वह दोनों छुपन छुपाई का खेल खेलने लगे।
अचानक से सोनी को याद आया अरे दोपहर हो गई मां गुस्सा होगी मुझे तो पराग लेकर जाना है।
'अच्छा कीड़े भाई नमस्ते!'
कीड़े ने भी अपने हाथ हिलाते हुए उसको नमस्ते बोला और विदा किया।
सोनी उड़ते उड़ते फूलों के पास पहुंँची वहांँ छोटे-बड़े रंग-बिरंगे बहुत तरह के फूल खिले थे। फूलों पर तितलियांँ नाच रही थी।
सोनी को देखकर वह प्रसन्न हो गई और खुश होते हुए तितलियांँ बोली !
सोनी सोनी आओ ना चलो थोड़ी देर झूमेंगे नाचेंगे गाएंगे मजा करेंगे।
सोनी बोली क्या करूंँ दीदी!
मन तो मेरा भी कर रहा है जरा सा झूम लु नाच लूं पर क्या करूंँ मुझे तो अभी बहुत सारे काम है?
मुझे तो पराग लेने जाना है।
तितलियाँ बोली सोनी बस थोड़ी देर खेलेंगे नाचेंगे गाएंगे तुम थोड़ी देर बाद चली जाना।
सोनी उनके साथ नाचने गाने को तैयार हो गई।
वह सुबह से शाम तक खेलते रहे।
अचानक सोनी को याद आया अरे मुझे तो पराग लेकर जाना है मांँ गुस्सा होगी वह बोली
'तितली दीदी तितली दीदी मैं चलती हूं!'
तितली बोली अच्छा राम-राम!
अब सोनी उड़ते उड़ते तालाब के पास पहुंची ,तालाब में कमल खिले हुए थे। कमल की पंखुड़ी पर भौरा बैठा हुआ गुंजार कर रहा था।
भंवरे ने कहा
सोनी…. सोनी...... आओ ना
चलो हम गाएंगे मौज करेंगे मजे करेंगे हम कमल पंखुड़ी पर गाएंगे।
चलो चलो सोनी शुरू करो कोई सुंदर सा गीत सुनाओ ना
सोनी ने गीत गाना शुरू करो
पंछी बनू उड़ती फिरू मस्त गगन में आज मैं आजाद हूं।
दुनिया के चमन में।
भंवरे ने मीठी तान छोड़ी भंवरे की तान सुनकर सोनी अपनी सुध बुध भूल गई और सारे काम छोड़ कर मस्ती से गाने गाने लगी।
अब शाम ढलने लगी और अंधेरा होने लगा भंवरा तो विदा लेकर अपने घर की ओर चल दिया फिर अचानक से सोनी को याद आया उसे तो पराग लेकर जाना था।
वह कमल से बोली कमल दादा मुझे पराग दे दो मेरी शीशी भर दो।
कमल ने कहा मेरा तो पूरा पराग खत्म हो गया है ।
सोनी तुमने आने में विलंब कर दी तुम्हें विलंब कहां हो गया
कमल ने पूछा?
सोनी बोली पहले में कीड़े के साथ खेलने लगी,
तितलियों के साथ नाचने लगी।
और फिर मैं भंवरे के साथ गाना गाने लगी इसीलिए मुझे विलंब हो गया।
फिर सोनी उड़ते उड़ते दोबारा फुलवारी में गई।
गेंदा के पास जाकर बोली मेरी शीशी पराग से भर दो
गेंदा ने भी यह कहा मेरा पराग पूरा खत्म हो गया तुमने आने में विलंब कर दिया।
उसने फिर वही बात है गेंदे को बताई कि मैं तितली कीड़े के साथ खेली तितली के साथ नाच किया भौंरे
के साथ गाना गाया।
इस तरह सोनी सब फूलों के पास पराग मांगने गई सभी ने कहा कि तुमने आने में देर कर दी अब हमारे पास पराग नहीं बचा।
सोनी भी अब पूरी तरह थक चुकी थी उसे भूख लगी थी नींद भी आ रही थी वह अपनी छत्ते के पास पहुंची।
द्वार पर दो रखवाले खड़े हुए थे उन्होंने द्वार पर ही सोनी को रोक दिया।
उनमें से एक ने कहा बताओ तुम शीशी में कितना पराग लेकर आई हो तभी तुम्हें अंदर जाने दिया जाएगा।
पर उसकी तो शीशी खाली थी रख वालों ने उन्हें अंदर जाने से मना कर दिया अब सोनी को सारी रात वृक्ष पर बैठे-बैठे बितानी पड़ी। रात भर भूख से व्याकुल और ठंड से परेशान रही उसको नींद कहां आती।
दूसरे दिन भोर होते ही सोनी की आंख खुल गई वैसे भी उसे नींद ही कहाँ आई थी उसने अपनी शीशी उठाई और फुलवारी की ओर चल दी अब तक धूप फैल गई थी।
फुलवारी में तरह-तरह के फूल खिलखिलाते हुए हंस रहे थे। सोनी ने गुलाब के फूल के पास कहां गुलाब दादा गुलाब दादा मेरी शीशी पराग से भर दो।
गुलाब ने झूमते हुए कहा ले लो सोनी तुम्हें जितना भी पराग चाहिए।
फिर वह सब फूलों के पास गई सब ने उसको पराग दे दिया अब तो उसकी शीशी भर गई थी वह अपने छत्ते के पास पहुंची और रखवालों को शीशी दिखाई।
उन्होंने उसे अंदर जाने दिया अंदर जाकर सोनी की माँ ने सोनी से कहा कल तुमने क्या-क्या किया सारी रात कहांँ रही सोनी ने सारी बात मांँ को बता दी ।
मांँ ने कहा "बेटा जीवन में समय का बहुत महत्व है अगर तुम काम समय पर नहीं करते तो तुम्हारे साथ ऐसा ही होता है। समय तो तेज गति से आगे बढ़ जाता है हर काम का एक समय होता है तुमने समय को के महत्व को ना समझते हुए पूरा दिन खेलने में बिता दिया और तुम्हें खाली हाथ वापस आना पड़ा।
अगर तुम अपना काम करके फिर खेलते तो तुम्हे ठंड और भूखे पेट ना सोना पड़ता"।
सोनी ने मां को कहा, मांँ आप ठीक कह रही हो मैं अब जीवन में समय के महत्व को समझ गई हूं और मैं आपसे वादा करती हूं।
मैं अपना काम पूरा करके ही खेलना शुरू करूंँगी।
उस दिन से सोनी हर काम समय पर करने लगी
तो बच्चों इस कहानी से आपने क्या शिक्षा ली कि कोई भी हो मनुष्य ,पशु ,पक्षी सबके जीवन में समय का बहुत महत्व है समय तो निरंतर अपनी गति से चलता है वह किसी के रोके नहीं रुकता।
इसलिए हमें आलस को छोड़कर अपने सब काम समय पर करने चाहिए।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा