खर्चे पर खर्चा है आया,
जी तो मेरा बहुत घबराया।
आमदनी अठन्नी देखो,
रुपए के खर्चे ने सताया।
महंगाई की मार सताए,
शादी ब्याहकी चिंता खाए।
कैसी होगी नैया पार,
जेब पर खर्चा भारी पाए।
कंगाली में आटा गीला,
महंगाई ने बहुत सताया।
कैसे कहूं मैं अपना हाल,
कमा कमा कर थका हूँ आज।
पूरी इच्छा करना पाता,
माहौल घर का बदला पाता।
हर कोई देखो मुंह फुलाए
कैसे मांग पूरी करें बताएं।
कंगाली में आटा गीला,
आकस्मिक खर्चों ने घेरा।
दाल रोटी में पड़ी खटाई,
घर में देखो बीमारी आई।
चिंता मुझे सताती जाए,
हल कोई नजर ना आए।
चारों तरफ घोर अंधेरा,
कंगाली में आटा गीला।
अब तो बस मन को समझाऊंँ,
नैया पार लगाओ राम।
एक लॉटरी मेरी लगवा दो
प्रभु जी मेरी चिंता मिटा दो।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा