ज्ञानी ज्ञान ना छोड़िए, कितना भी दुख आय।
योग ध्यान के कर्मफल, सब व्याधा मिट जाय।।
जीव मिलन हो ईश से ,यही ध्येय है योग।
,जन्म मृत्यु व्याधा मिटे, रहे रोग ना भोग।।
तन की रक्षा के लिए, करना होगा ध्यान।
इड़ा पिंगला सुषुम्ना, प्रभु का हैं वरदान।।
मनु शतरूपा योगबल,मानव रचनाकार।
जीवन तारन के लिए ,किया बड़ा उपकार।।
जनम मरण से मुक्ति को ,योग लेउ अपनाय।
जरा व्याधि के दर्द से,छुटकारा हो जाय।।
मेरुदंड की शक्ति पर,धर लो अपना ध्यान।
कुण्डलिनी को जगाओ,हो जाए कल्याण।।
योग विधा की एक ही,अनुपम विधि है ध्यान।
परमशक्ति से मेल कर,जग से करो पयान।।
छोड़ जगत को जाय जब,अन्तर्मन पछताय।
साथ न देगा कोय तब,परिजन ताल बजाय।।
खाते पीते रात दिन ,कर्म करें बहु भांति।
भव भय से डरते नहीं,पूछूं जात न पांत।।
जीवन मुक्ति का उपाय,योगी ही बतलाय।
करो साधना इष्ट की,शंकर होंइ सहाय।।
नमाज की मुद्रा कहें ,योगिक मुद्रा रूप ।
सर्वधर्म आराधना ,योगा के बहुरूप ।।
बच्चूलाल दीक्षित
दबोहा भिण्ड/ ग्वालियर