नही जरूरी हर
बात का मतलब हो;
पर कुछ तो
मतलब की बातें हो।
क्या खोज रहा है
हर इन्सान,
क्यों गम से
भारी हर सीना ।
क्यो जख्मी
जिगर ही हैं सबके ,
क्यों दूर नजर से
सब अपने ।
क्यों जहर घुला
है रिश्तों में,
क्यों मिठास नहीं
अब लफ्जो में ।
क्यों भीड़ में
तन्हा सभी यहाँ ,
क्यों हाथ में हाथ
नही अपना।
विश्वास टूटता ये
अपनों का,
रिश्ता क्यों रूठ रहा
मन से मन का।
हर राह अंधेरा रह जायेगा
कोई जब अपना,
साथ नही आयेगा ।
वन्दना श्रीवास्तव,जौनपुर