जब गहन वेदना का था पल
मन में उपजा संत्रास विकल
मन जला गई, तन जला गई
वह प्रेमभाव या दावानल !
कुछ कोमल भाव कपोल खिले
कुछ उजले कुछ शुष्क मिले
जो शब्द शब्द में बिखर गए
'वह नीर भारी दुःख की बदली '
जो 'दीप शिखा 'सी जल जल कर
'यामा 'के जीवन का दर्शन
लिख दी कविता की 'रश्मि 'धवल
वह प्रेमभाव या दावानल !!
मिथक वेदना का निखार
था काव्य पुंज 'नीरजा ''निहार '
प्रस्तर सी पीर भी गा गा कर
कुछ टूटे मोती बन अतीत
सम पुष्पों का मकरंद- गंध
फैला जग में यश गान विमल
वह प्रेम भाव या दावानल !!
नीरजा बसंती ,गोरखपुर, उ0प्र0