कबीर , जिन्हें भगत कबीर या कबीर दास कहा जाता ए , इनका जन्म 1440 में वाराणसी में हुआ । कबीर धर्मनिरपेक्ष थे और समाज में फैली कुरितियों, कर्मकांड, अंधविश्वास की कड़ी आलोचना करते थे । उन्हें साहित्य के महिमामणि्डत कहा जाता है ।
कबीर के जन्म के विषय में किंवदंतियां हैं कि ये रामानंदसरस्वती के आशीर्वाद से काशी की एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए, जिसे स्वामी जी ने भूल से पुत्रवती का आशीर्वाद दे दिया था , और उस ब्राह्मणी ने उस नवजात शिशु को लहरतारा ताल के पास फेंक दिया जिसे नीमा और नीरू उठा कर ले गए । इस बारे में कोई राय निश्चित नहीं है कि कबीर नीमा और नीरू की संतान थे या उन्होंने कबीर का पालन-पोषण किया । लेकिन कबीर के शब्दों में--- हम काशी में प्रकट भए हैं, रामानंद चेताए ।
कबीर ने स्वमं को जुलाहे के रूप में प्रस्तुत किया । जाति जुलाहा नाम कबीरा , बनि बनि फिरो उदासी कबीर पढ़े-लिखे नहीं थे , उन्होंने स्वंय कोई ग्रंथ नहीं लिखा उन्होंने शब्द व्यक्त किए और उनके शिष्यों ने लिखा ।
कबीर ने आत्मनिरिक्षण और आत्मपरीक्षण करने के लिए देश के विभिन्न भागों की यात्राएं की लेकिन जब मगहर गए तो कबीर दूं:खी थे ।
अब कहूं राम अवध गति मोरी ,
तजी लो बनारस मति भी मोरी
119 वर्ष की आयु में कबीर का मगहर में ही देहान्त हुआ । कबीर एक प्रतिभाशाली व्यक्ति थे ,उनकी मशहूर वाणी -----
सांच बराबर तप नहीं , झूठ बराबर पाप ,
जाके हिरदे सांची है , ताके हिरदे आप ।
सांची बिना सुमिरन नहीं, भय बिन भक्ति ना होए,
पारस में पड़दा रहे, कंचन किहि विधि होए ।
सांची को सांचा मिले , अधिका बढ़े स्नेह ,
झूठे को सांचा मिले तब ही टूटे नेह ।
प्रेम बजाज ©®
जगाधरी ( यमुनानगर)