ना ही उनकी दाड़ी मूछें होती हैं। अपने भीतर
कहां से ले आती हैं वह पुरुषत्व की सारी बातें।
आज उन्हें पिता दिवस की शुभकामनाएं देना है।
अपने भीतर वह नारी संग पुरुषत्व का मेल, कभी
जल्दी में तो कभी धीरे-धीरे स्थापित कर लेती हैं।
यह एक अलग ही श्रेणी की नायिका होती हैं, जो
नायक के गुण से भी परिपूर्ण होती हैं।
बच्चों के लिये अक्सर यह दोहरी भूमिका में होती हैं।
एकल खिड़की या सिंगल विंडो से अब हम अन्जान
नहीं। सिंगल विंडो पर बैठ यह औरतें मां और पिता
दोनों के फर्ज शिद्दत से निभाती हैं।
जिन बच्चों के पिता नहीं उन बच्चों की माताएं अक्सर
मां और पिता के किरदार में बड़ी ही बहादुरी से फिट हो
जाती हैं।मां की ममता और पिता के स्नेह का एक दिया
अपने भीतर सदा जलाती हैं।
पिता दिवस के अवसर पर पिताओं के संग हम सब
एकल खिड़की पर बैठी हुई उस एकल (सिंगल) माता
का भी सम्मान करें। इनके चरणों का वंदन कर इन्हें
कोटी - कोटी प्रणाम करें।
रमा निगम वरिष्ठ साहित्यकार
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