ये कैसी अजनबीयत है..

उसके हज़ारों किस्सों में, एक ज़रा सा किस्सा मेरा भी हुआ करता है ,

कैसी अजनबीयत है, वो कुछ न होकर भी मेरा हिस्सा हुआ करता है !!


सिर्फ भीड़ ही भीड़ है दूर तलक यहां अब,बाकी निशां कुछ और नहीं ,

कहीं "कुछ तो ऐसा" है हममें, कि वो पहचाना रास्ता हुआ करता है !!


बचके गुजर जाती थी चुराके नज़रें अपनी,अक्सर मन की गलियों से ,

एक तेरे भरोसे पर ही, अब खुद से भी रोज़ सामना हुआ करता है !!


हां, बेशक खिले होंगे हजारों फूल, बागबान के इस सुंदर से चमन में ,

पर, वो सुदूर एक अकेला फूल ही, मेरा तो गुलिस्तां हुआ करता है !!


छूट रहे हैं बारी-बारी सब रिश्तें, यकीन अब किसी पर होता ही नहीं ,

न जानें कैसा "रिश्ता" है उससे, कि वो मेरा राब्ता हुआ करता है !!


हां, वो एक भरोसा है..विश्वास है..मेरे अंतर्मन का राग है..

मूंद लेती हूं आंखें अंधेरों में भी,जब से वो मेरा वास्ता हुआ करता है !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश