प्रकृति ईश्वर का एक रूप है

प्रकृति ईश्वर का एक रूप

हर कण में सत्ता ईश्वर की

निहारूं जब अलौकिक सौंदर्य

आत्मसात कर लेती हूं स्वयं को

नदियों की मधुर कलकल में

झरनों की नीरव भाषा में

संगीत और स्वर सुनती हूं

मानों ईश्वर ने तान कोई छेडी है

पर्वतों की ऊंचाई सा व्यक्तित्व

समाना चाहती हूं अपने अंदर

जनु ईश्वर प्रदत्त आशीर्वाद मिला

स्वयं को पर्वत सदृश ऊंचा उठाकर

जग में व्याप्त जाति द्वेष की भावना

परस्पर वैमनस्यता का दुराभाव को

जलाकर दीपक एक प्रेम-भाव का

मिटा डालें तिमिर अज्ञानता का

विटप पातप पर लिपटी वल्लरियां

संदेश देती समानता और प्यार का

भ्रमर गुंजन विशालता पुष्प हृदय की

चहुंओर व्याप्त प्रकृति में ईश्वर रूप

स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश