पापनाशिनी गंगा के उत्पत्ति की गाथा
मनारद जी विष्णू से पूछें कहो विधाता
अवतरित हुईं पृथ्वी पर कैसे माँ गंगा
मोक्षदायिनी बनी हुईं जीवन सुखदाता
सगर सूर्यवंशी की शैव्या और बेदमी रानी
शैव्या पुत्र नाम असमंजस है ज्ञानी विज्ञानी
शंकर भक्त बेदमी साठ सहस्र पुत्र की मात
सम्राट सगर ने शत अश्वमेघ यज्ञ की ठानी
सौवाँ यज्ञ समापन को श्यामवर्ण अश्व को छोड़ा
इंद्रासन जब डोलन लागा बांध लियो इंद्र ने घोड़ा
सहन नहीं कर सकता कोई कपिल मुनि का तेज
अतएव अश्व को उसने मुनीश के आश्रम में छोड़ा
मिली सूचना राजा को जब अश्व किसी ने बांध लिया है
तत्क्षण षष्टि सहस्र पुत्रों को अश्व खोज आदेश दिया है
देखा अश्व कपिल मुनि आश्रम बिन आज्ञा लेने को दौड़े
सह न सके अपमान मुनि तब क्रुद्ध दृष्टि निक्षेप किया है
क्षणभर में सब भस्म हो गए खबर सुनी राजा बिलखाने
घोर तपस्या की असमंजस मृत भ्रातागण उद्धार कराने
पुत्र अंशुमान पौत्र सगर का कपिल मुनि की सेवा कीन्हे
अंशुमान पर अति प्रशन्न हो मुनि घोड़ा बापस कर दीन्हे
सफल हुआ अश्वमेध यज्ञ पर मृतक पुत्र उद्धार न पाए
अंशुमान पूछा मुनिवर से मुक्ति उपाय कपिल बतलाए
केवल- केवल एक युक्ति बन सकती इनकी मुक्ति का
गंगा जब पृथ्वी पर आवें तब ही ये सब मुक्ति पाएं
कुल उद्धार लक्ष्य रघुवंशी अंशुमान कठोर तप कीन्हा
तदान्तर प्रिय पुत्र दिलीप ने आजीवन पूजा तप कीन्हा
क्रमशः दिलीप सुत भगीरथ एकनिष्ठ शंकर तप कीन्हा
पीढ़ी दर पीढ़ी तप क्रम में हुए प्रसन्न शिव दर्शन दीन्हा
सगर पुत्र उद्धार करन को गंगा को शिव आज्ञा दीन्ही
विष्णुपुरी से बह निकलीं गंगा पृथ्वी को चल दीन्ही
प्रवल प्रवाह थामने शिव ने गंगा जी को जटा समाया
बूँद जटा से शंकर छोड़ी गंगा अवतार धरा धर लीन्ही
गंगा लेकर चले भगीरथ तेज गति गंगा बह निकलीं
बहा ले चलीं जान्हु आश्रम क्रुद्ध ऋषि ने गंगा पीलीं
भगीरथ आराधन से प्रशन्न मुक्त करी तब ऋषि गंगा
चले भगीरथ पुनि गंगा संग पहुंचे जाकर भस्म स्थली
परिजनों की भस्म ढेर पर भागीरथ ने धौंक लगाया
फिर साठ हजार सगर पुत्रों को गंगा का स्पर्श कराया
राजकुमारों को मुक्ति दिलाकर सीधे ही बैकुण्ठ पठाया
कृत कृत्य हुए भगीरथ राजा भारतमाँ ने गंगा को पाया
बच्चूलाल दीक्षित
दबोहा भिण्ड /ग्वालियर