तुम्हीं इस देश की वाणी,
कहे सब जन जवानी ही;
चले ऊर्ज अमित लेकर,
करत रवि आगवानी ही।।
बने यह देह फौलादी,
रहे मन में सदा धीरज;
सहज चिंतन रहे पावन,
दिखे ईमान सत नीरज।
रखा जाये सतत प्रिय ही,
हित त्याग ही रहे लेखा;
रहे चैतन्य मन हरदम,
मिली बचपन कुशल रेखा।
धरा जब नाम गुरुवर ने,
रहे तब लीन माता में;
लिखा बस नाम अपना था,
मिला सब ज्ञान दाता में।
उदधि आज्ञा लिए गुरु की,
दिया तब धर्म संबोधन;
किया तब आत्म दर्शन,
युवा मन ज्ञान संशोधन।
बड़ा है भक्त भारत का,
रखा आधार काव्यांगल;
रहे युव-भावना उन्नत,
जगत की भक्ति का आँचल।
जगत के आदि गुरु शंकर,
लखे निर्गुण सगुण ईश्वर।
किये श्रम दान आजीवन,
दिये शिव ज्ञान बन शंकर।
करे शुभ काज जीवन यह,
युवा हैं, शक्ति का सागर;
सुखी सब हों सदा जग में,
हृदय हो प्रेम का गागर।
@ मीरा भारती,
पटना, बिहार।