इंसान खुद में ही कोई क़ाबिल तलाश कर
दौरे सुकून के लिए चोटिल तलाश कर
तू पत्थरों की भीड़ में इक दिल तलाश कर
तुझको जहाँ का खेल जो कामिल सिखा सके
ऐसा अज़ीम शख़्स वो फ़ाज़िल तलाश कर
बनना है गर यहाँ का सिकंदर तुझे कभी
मत वार कर अबल से मुक़ाबिल तलाश कर
किस्मत लिखी है जिसने फसादी के नाम की
मत दे सज़ा सभी को वो ज़ाहिल तलाश कर
इंसान को सज़ा न दे गर हो सके कहीं
इंसानियत के क़त्ल का क़ातिल तलाश कर
मतलब के इस जहाँ में कोई अपना ढूँढ ले
बाँटे जो ग़म भी तेरा वो क़ाइल तलाश कर
प्रज्ञा देवले✍️