ग़ज़ल : मैं जेहन में अंधेरा मिटाने से आऊँगा

मैं जेहन में अंधेरा मिटाने से आऊँगा

मैं नजर में सूरज जलाने से आऊँगा

तुम मन से गलतफहमी निकाल दो

कि मैं गुस्से में बुलाने से आऊँगा

लोहे पर सोने का पानी चढ़ाने वालों

मैं कभी नहीं झूठ खनकाने से आऊँगा

पता लगे सच्चाई तेरे रहने की जगह

तुझे देखने के लिए बहाने से आऊँगा

तुम पहन लो मोहब्बत के दस्ताने

फिर एक उँगली के इशारे से आऊँगा

टूट चुके रिश्ते की एक पुरानी याद हूँ मैं

गम बनकर रुलाने के इरादे से आऊँगा

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अवतार सिंह, प्राध्यापक

जयपुर