मैं निशब्द रह जाती है।
साथ तुम्हारा पाकर मैं ,
पारस पत्थर बन जाती हूंँ।
तुम तो हो गुणो के सागर,
अवगुण भरी है मेरी गागर।
गुण भर दो कुछ इसमें प्रभु,
पारस सा मुझे कर दो प्रभु।
सुख दुख भरा जीवन मेरा,
उलझन इसमें बहुत बड़ी।
सब्र मेरे जीवन में दे दो,
पारस सा मुझे कर दो प्रभु।
मार्ग प्रशस्त तुम मेरा करते,
सही गलत का भेद बताते।
आत्मा मेरी जागृत करते,
पारस सा मुझे कर दो प्रभु।
धन्य हुआ जीवन मेरा,
मानव का मुझे जन्म मिला।
सेवा ,दान, करुणा का तूने,
मुझको जो गुण है दिया।
आप जगत के दाता हो,
सारी सृष्टि के विधाता हो।
बांँह थाम मेरी रहते।
पारस सा मुझे कर दो प्रभु।
थोड़ी अपनी भक्ति दे दो,
थोड़ी मुझको शक्ति दे दो।
आत्मज्ञान का अवसर दे दो
अपना सामीप्य मुझे दे दो।।
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा