मैंने मुड़कर कोई बहाना बनाया है।
आज फिर काल ने दर मेरा खटकाया है।
मैं तो जिंदा हूं, मगर फिर भी जिंदा नहीं,
मरते हैं जीवन को जिन्होंने सजाया है।
आज फिर काल ने दर मेरा खटकाया है।
मुझको फुर्सत है नहीं तेरे संग चलने की,
गिन तो लूँ, गम कितना खुदा ने बरसाया है।
आज फिर काल ने दर मेरा खटकाया है।
तुझको लेने का क्या हक, जो तूने दिया ही नहीं,
पहले कर्ज़ उतार, मेरा तुझ पर बकाया है।
आज फिर काल ने दर मेरा खटकाया है।
मैंने मुड़कर कोई बहाना बनाया है,
आज फिर काल ने दर मेरा खटकाया है।
रचयिता - सलोनी चावला