अंतर्आत्मा तृप्त जब होती

नाम कमाने कि हर ओर होड़ लगी

दूजों को गिराने की देखो दौड़ लगी

करे कोई नाम मेरा हो बस 

एसी संकुचित सोच की जोड़ लगी।।

जिसे पुण्य कमाना उसे फर्क न पड़ता

प्रभु उनके नाम में स्वयं हीरा है जड़ता।।

वो तो प्रभु के भक्त बन सेवा करते जाते

नाम चाहने वाले कभी न कभी तो गिर जाते।।

सेवा करने वालों को प्रभु दिल में बसाते

कांटों , मुश्किल से भरी राह स्वयं हटाते

जो नाम चाहे उन्हें सजा देकर गिराते 

कालिख दिल की, दुनिया के समक्ष लाते।।

नि:स्वार्थ सेवा करके देख रे मानव

अंतर्आत्मा तृप्त हो,  दिल को सुकून दिलाते

दिल किसी को खुशी दे , खुशनुमा ही होता

यही तो हम इंसा तुझे हैं समझाते।।

नाम कमाने कि बस होड़ लगी ।।२।।

वीना आडवाणी तन्वी

नागपुर, महाराष्ट्र