सातवी कालरात्रि

सातवी कालरात्रि महामाया,

तेरा विकट रूप निराला।

चमकीले से केश तेरे,

लप-लप करती जिव्हा।


गदर्भ तेरी है सवारी,

दस भुजाएं तेरी बलशाली

खड़ग,खप्पर और त्रिशुला,

गदा ,चक्र धनुष है आला।


गले नर मुंडो की माला,

दुष्टों का संहार करे तू।

भक्तों का बेड़ा पार करे तू,

तू ही काली तू ही कालका।


देवों की रक्षा करती है,

रक्तबीज को मारा तूने।

बूंद एक जमीन पर ना गिरने पाई,

खप्पर भर भर पी गई महामाई।


भूत प्रेत निकट नहीं आते,

दिव्य दृष्टि से टिक नहीं पाते।

रक्तबीज को मारने वाली,

दुष्टों को संघारने वाली


महामाया  शक्ति की खान,

मनवांछित फल देने वाली।

हृदय बड़ा कोमल है माता,

मनो वांछित फल देती माता।


चिंता हरने वाली माता,

सुखों को बरसा देना।

गलती मेरी माफ़ करना,

चरणों में स्थान धरना।


         रचनाकार ✍️

         मधु अरोरा