मायूस है गुल गुलशन के भीतर ।।
घाव भी है मलहम भी है दिल में,
अश्कों का समंदर नयन के भीतर ।
ये आंखे हंसती है ये आंखें रोती है,
मेरी दर्द छुपा है इन रुदन के भीतर ।
यादों को शहरों में ही छोड़ दिया है,
महसूस है कंपन धड़कन के भीतर ।
तुम्हें याद करने की एक ही मकसद,
कुछ शीत बिंदु मिले जलन के भीतर ।
बिखरे हुए फूल चमन के भीतर ।
मायूस है गुल गुलशन के भीतर ।।
स्वरचित एवं मौलिक
मनोज शाह 'मानस'
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