से ले आई सखियां।
महीन -महीन पीसकर ,
रचा रही सखियां ।
शिवानी के हाथों में रंग बरसा रही सखियांँ,
तेरे प्यार पर नाज मुझे लिख रही सखियां।
सोलह सिंगार से सजा रही सखियां ,
हथेली पर तेरा नाम लिख चिढ़ा रही सखियांँ।
शर्म से लाल हुए मेरे गालों का,
मजाक उड़ा रही सखियां।
तेरे प्यार का सुरूर
उतर आया आंखों मैं
मेंहदी आकाश जी के नाम की
लगा रही सखियांँ
देख देख खुश हो रही सखियांँ
तुमसे खुद तुम्हारा नाम ढूंढवाकर
मेरी रची हथेली पर इतरा रही सखियां
मेहंदी के रंगों से उतार-चढ़ाव जीवन का
बता रही थी सखियांँ
रचनाकार ✍️
मधु अरोरा