मेरे मन में फिर क्यूं है उलझन
अय रब हमने मांगी थी खुशियाँ
फिर क्यूं बनाया मुझको दुखिया
पलाश के फूल ख़िले हैं वन में
गुलाब बना है राजा गुलशन में
हर कोई जहाँ खुशहाल खड़ा है
मेरी झोली में क्यूं मातम पड़ा है
तुँ न्यायाधीश है इस जगत का माली
अर्जी मेरी ना जाये दर से खाली
कब तलक आँखें मूंदें मौन रहेगा
कभी तो तेरी भी आँखें खुलेगा
सबकी तुँने सुन ली है फरियाद
मेरी जीवन भी कर दो आबाद
विपत्ती से दो हमें मुक्ति ओ दाता
झोली भर दो सुख शांति से ज्ञाता
हे जगत के स्वामी न्यायकर्ता
भर देना झोली ओ दुःखहर्ता
मेरे लिये बन जा हर पल का छतरी
ओ पालनहारा सुन मेरी भी विनती
तुम कभी ना करता है जग में अन्याय
मेरी विनती पर करना है तुम्हें न्याय
मेरी भी हर लो दुःख ओ भगवान
बन जाऊँ मैं भी जग में ज्ञानवान
उदय किशोर साह
मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार
9546115088