मनुष्य की सामान्य इच्छाओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा बिना किसी कठिनाई के पूरी की जा सकती है, किन्तु जब इच्छा बहुगुणित होकर कलुषित हो जाती है, तब उसे पूरी करना प्रकृति के लिए कठिन हो जाता है। मनुष्य की यह बहुगुणित इच्छा ही प्राकृतिक संकटों की जननी है। इसी कलुषित एवं बहुगुणित इच्छा की तुष्टि के फलस्वरूप पर्यावरण तहस-नहस हो जाता है। वायु, जल, ध्वनि एवं दृश्य प्रदूषित हो जाते हैं। जैसे-जैसे व्यक्ति की इच्छा बहुगुणित और कलुषित होती जाती है, उसकी संग्रह की प्रवृत्ति बढ़ती जाती है। उसका मन, चित्त, धवलता के स्थान पर कालिमा गृहण कर लेता है। आइये, हम कालिमा के पथ को छोड़कर धवलता के पथ पर अग्रसर हों और अधिक से अधिक वृक्षारोपण कर अपने पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्द्धन करें। ये विचार माननीय न्यायमूर्ति विमला जैन ने नैनागिरि में तीर्थंकर वन में पौधों के समृद्धिकरण के एक कार्यक्रम व्यक्त किये। श्री सुरेश जैन (आईएएस) ने कहा हमें पेड़-पौधों का बच्चों की भांति पालन-पोषण करना होगा।
ज्ञातव्य है कि नैनागिरि में तीर्थंकर वाटिका (तीर्थंकर वन) को संपोषित करने के श्री ए.के. जैन, मुख्य अभियंता (सेवानिवृत्त) एवं श्री विनोद जैन, उप वनसंरक्षक (सेवानिवृत्त) के भाव जागृत हुए। आप दोनों पूरी लगन, निष्ठा, तन, मन, धन से नैनागिरि में तीर्थंकर वन निर्मित करने में करीब दो वर्ष से मेहनत कर रहे हैं। आप दोनों नैनागिरि जी को हरा-भरा रखने की परिकल्पना को साकार कर रहे है। आप चाहते है कि भावी पीढ़ी को तीर्थंकर कैवल्य वृक्षों की ज्ञानवर्धक जानकारी मिल सके। तीर्थ क्षेत्र का पर्यावरण संतुलन, प्राकृतिक सौन्दर्य सतत बना रहे। उपरोक्त कार्य में आप लोगांे के अन्नय साथी श्री संतोष जैन, एस.डी.ओ. फारेस्ट, जबलपुर सतत सहयोग दे रहे है।
-डॉ. महेन्द्रकुमार जैन ‘मनुज’
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