पंखों के तर्ज़ पर नहीं, सपनों के तर्ज़ पर नहीं
उड़ानों के तर्ज़ पर नहीं, आजादियों के तर्ज़ पर नहीं
और न ही आसमानों के तर्ज़ पर ,
मैंने एक बीज होना चाहा
अंकुरण के तर्ज़ पर, पेड़ों के तर्ज़ पर,
घोंसलों के तर्ज़ पर, सभ्यताओं के तर्ज़ पर,
बारिशों के तर्ज़ पर, धूप के तर्ज़ पर
और जंगलों के तर्ज़ पर ,
मैंने एक कविता होना चाहा
छंदों के तर्ज़ पर नहीं, व्याकरणों के तर्ज़ पर नहीं
शब्दों के तर्ज़ पर नहीं, अलंकारों के तर्ज़ पर नहीं
और न ही विचारों के तर्ज़ पर ,
मैंने एक चिड़िया होना चाहा..एक कविता होना चाहा
"चुप होते हुए संवादों" के तर्ज़ पर ,
तेरे-मेरे एहसासों के तर्ज़ पर
और मनुष्यता के तर्ज़ पर ,
मैंने कुछ "मुझसा" होना चाहा..अपनी ही तर्ज़ पर !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ , उत्तर प्रदेश