चलो निकालें सप्ताह में एक दिन!

 चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

जिसमें खुद का साथ हो,

बस खुद से बात हो,

चाहे दिन या रात हो,

कैसे भी हालात हो!


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

लफ्ज़ों पर हो कई सवाल,

यह दुनिया है या माया का जाल?

क्या पाया क्या खोया इस साल?

खुद से पूछे खुद का हाल!


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

पूछें, कितना प्यार खुद से किया?

कितना दर्द गैरों को दिया?

कितना खुलकर हे जिया?

कितनों का है हक लिया?


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

आईने के सामने बैठे एक बार,

थोड़ी देर के लिए छोड़े श्रृंगार,

जाने कैसे है हमारे आचार विचार?

क्या बाकी है हम में शिष्टाचार?


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

जाने, खुद को क्या है गम?

किसे ढूंढते हैं हम हरदम?

क्या सही चल रहे हैं हमारे कदम?

कैसा महसूस कर रहे हे हम?


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,पूछें

क्या हमसे यह जमाना है?

जहां हर कोई बेगाना है,

बस धन दौलत ही कमाना है,

और इस दुनिया से एक दिन खाली हाथ जाना है!


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,पूछें

कितनों के हमने घर बसाऐ?

कितनों के घर हमने जलाए?

इंसान बनके हम इस धरती पे आए,

इंसानियत के नाते, क्या हम कुछ कर पाए?


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन,

खुद को थोड़ा नजदीक से जाने,

खुद को सबसे ज्यादा पहचाने,

व्यस्त होने के ना करें बहाने,

 खुद से मिले हुए जमाने!


चलो निकालें सप्ताह में एक दिन!

चलो  निकालें सप्ताह में बस एक दिन!


डॉ. माध्वी बोरसे!

राजस्थान (रावतभाटा)