हो गया खुद से मिले हुये,
बनी संवरी मैं रहती थी,
एक अरसा हो गया दर्पण देखे हुये।
मेरी वजूद तो तुम थी माँ,
मेरी लेखनी का सार भी तुम थी,
भले ही रोज़ बातें न करूँ पर
मेरी बातों का आधार भी तुम थी।
कितनी अकेली हो गयी तेरे जाने के बाद,
रहती हूँ खोई खोई आती है तेरी याद।
तुम्हारी वो आखिरी विदाई
आँखें नम कर देती हैं,
लाल जोड़े में सजी थी तुम
तुम्हारी यादें सोने नहीं देती हैं।
माँ पहले के जैसे गले लगा लो न,
नीरव हो गया है ये मन मेरा
मुझे प्यार से बहला दो न।
रीमा सिन्हा
लखनऊ-उत्तर प्रदेश