जिसके पश्चात् अनेकों प्रश्नों पर चर्चा जोरों पर चल रही है | समाजिक सच्चाई और राजनैतिक सच्चाई को एक चश्मे से देखकर यदि कहा जाए तो निसंदेह यह कहा जा सकता है कि अब सच्ची न्यूज़, खोजी पत्रकारिता और भर्ष्टाचार जैसे समाचार अब छपते ही नहीं | वजह कई हो सकती है पर मूल वजह में जाये तो पत्रकारों ने जिस तरह अपनी छवि स्वयं ख़राब की है उसका खामियाजा भी अब बड़े पैमाने पर दिखने लगा है | आज आपको हर तीसरा व्यक्ति अपने आप को पत्रकार कहता है जबकि पत्रकारिता की मूल आवश्यकता से उसका लेना देना ही नहीं है | दूसरी विकट समस्या सरकारों, प्रशासन और दबंगो द्वारा पत्रकारों को नियंत्रित करने का कार्य तेजी से करने की वजह से उत्पन्न हुई है |
आज जिस बात पर हम हल्ला मचा रहे है और आजादी की बात कर रहे है उसके लिए हम सब ही तो जिम्मेदार है | पर इन सब बातों के बीच पत्रकारों की अपनी भी एक बड़ी समस्या है मसलन आमदनी नाम मात्र होना, प्रशासन, सरकारों का डर और निजी लाभ में लिप्त होना भी पत्रकारों की छवि को ख़राब कर रहा है | प्रत्येक पेशे की एक न्यूनतम आवश्यकता होती है पर पत्रकार बनने की ?? इन्ही कमियों और खामियों का लाभ सरकारे, प्रशासन और भ्रष्ट अधिकारी और नेता उठा रहे है जहाँ पत्रकारों के खिलाफ अमानवीय घटनाओं में तेजी आयी है वही अब चौथे स्तम्भ का खुला चीर हरण भी होने लगा है | सिर्फ इतना ही नहीं पत्रकारों को अब चौराहों पर खुला पीटा जाता है, धमकियाँ दी जाती है यहाँ तक की जिन्दा जलाया भी जा रहा है |
कहतें है यदि आपके पड़ोसी पर अत्यचार हो रहा है और आप शांत है तो अगला नम्बर आप का हो सकता है पर इस सच्चाई से पत्रकार बंधू आज भी परिचित नहीं है तभी तो एक दो नहीं इनके अनेकों संघठन है पर जरूरत के समय कोई दिखायी नहीं देता है | अब सच्ची खबरें तभी छप पा रही है जबकि उसको प्रसारित करने के पीछे चुनिन्दा लोगों का निजी स्वार्थ हो अन्यथा उन ख़बरों का पता ही नहीं चलता क्या हुआ | कई ऐसे पत्रकार है जो ख़बरों के नाम से वसूली करने से भी नहीं चुकते | इस तरह की मिश्रित श्रेणियों की वजह से पत्रकारिता अब प्रश्नों के घेरे में है | जबकि इस क्षेत्र के लिए पत्रकार आयोग का गठन होना अनिवार्यता की एक पायदान से भी ऊपर की आवश्यकता बन चूका है |
समाज और ज्ञानियों के साथ- साथ आम आदमी को गर्व इस बात का होना चाहिए की अभी भी कुछ पत्रकार ऐसे है जो अपने पेशे के प्रति ईमानदार है और निडर भाव से पत्रकारिता कर रहें है मसलन यह समाचार पत्र जिसे आप अभी पढ़ रहें है | देश में सच्चे और निडर पत्रकारों की स्थिति कितनी विषम बन चुकी है इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि फ्रांस की संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने पत्रकारों की सुरक्षा के मामले में भारत को दुनियां के सबसे खतरनाक देशों में रखा है |
आकड़ो की अगर हम बात करे तो यह देखने को मिलेगा कि भारत मे मीडिया की आजादी के मामले में रैंकिंग लगातार तेजी से गिर रही है | फ्रांस की संस्था रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के अनुसार 2002 में 180 देशों में भारत की रैंक 80वें नंबर पर थी | यह रैंकिंग 2010 में गिरकर 122 और 2012 में 131 पर आ गई | वर्ष 2013 और 2014 में भारत की रैंकिंग और फिसलकर 140वें नंबर पर आ गयी | पिछले दो साल यानी 2020 और 2021 में भारत 142वें नंबर पर है | यह आकड़ें बिना किसी शब्दों के कई बातों की पुष्टि कर देते है | पत्रकारों को न केवल पुलिस के हमले झेलने पड़ते है बल्कि राजनेता भी उन पर हमला करते है और भ्रष्ट अधिकारी भी उन पर हमला करतें है |
नीतियों का विरोध करने पर या किसी सरकार, व्यक्ति के खिलाफ सच्चाई उजागिर करने पर उन्हें जान से मारने की न केवल धमकी दी जाती है बल्कि उसे मूर्त रूप भी दिया जाता है | कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट के अनुसार पिछले 10 वर्षो में भारत में 28 पत्रकारों को उनके काम के चलतें जान गवानी पड़ी है | बीहाइंड बार्सः अरेस्ट एंड डिटेंशन ऑफ जर्नलिस्ट इन इंडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वर्ष 2010 से 2020 के मध्य कुल 154 पत्रकारों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था | इन आकड़ों को विस्तारित रूप में देखे तो पता चलता है की 2010 से 2016 के मध्य मात्र 33 केस पत्रकारों के खिलाफ दर्ज हुए थे जबकि वर्ष 2017 से 2020 यानि की मात्र तीन वर्षो में 121 केस दर्ज हुए है | इन दर्ज ज्यादातर मामलों में देशद्रोह और यूएपीए के तहत आरोपी बनाया गया था | राइट एंड रिस्क एनालिसिस ग्रुप (RRAG) नाम की एक संस्था की वर्ष 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में सबसे अधिक पत्रकारों को प्रताड़ना झेलनी पड़ी | यदि देखा जाये तो देश के प्रत्येक राज्य में पत्रकारों को किसी न किसी वजह से प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है |
देश में सबसे अधिक हिंदी भाषीय पत्रकारों की संख्या है जबकि अंग्रेजी पत्रकारों की संख्या दुसरे क्रम पर है | पत्रकारों के लिए राज्य और केंद्र के अपने अलग - अलग नियम है |
चीर हरण रोकने के लिए अब जरूरत है पत्रकारों के हितों को सुरक्षित करने की और इसके लिए यह बेहद जरुरी है की केन्द्रीय स्तर पर पत्रकारों के लिए नियमावली बनायीं जाये जिसमे इनके अधिकार और कर्त्यव्यों के साथ साथ न्यूनतम वेतन, कार्य के घंटे, समाजिक सुरक्षा की योजनाओं, जॉब सिक्यूरिटी जैसे महत्वपूर्ण बिन्दुओं का समावेश हो | जिससे एक पत्रकार अपने हितों और दायित्वों की पूर्ति करते हुए अपने कर्तव्यों का निर्वहन कर सकें | राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारों पर हमलों का रिकार्ड अलग से रखा जाए | एक पत्रकार समाज का आइना होता है जो सच्चाई को उजागिर करता है उसके लिए यह जरुरी है की उसे स्वतंत्रता प्राप्त हो | क्योंकि यदि स्वतंत्रता नहीं होगी तो कही न कही समाज के सामने सच्चाई नहीं आ पायेगी ऐसे में परिवर्तन की आश करना स्वयं के साथ बेईमानी करना जैसे होगा |
समय के साथ साथ चौथे स्तम्भ पर भरोसे की उम्मीद में जिस तरह से कमी आयी है उसे दूर करने के लिए सरकार, समाज, प्रशासन के साथ साथ स्वयं पत्रकारों और संस्थानों को भी एकजुट होकर कार्य करने की जरूरत है | व्यक्तिगत हित की अपेक्षा समाजिक और सामूहिक जन हितों को प्राथमिकता देने की अब जरूरत है | राजनैतिक और प्रशासनिक हस्तक्षेप बंद करके पत्रकारों के शोषण को समाप्त किया जा सकता है साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इस क्षेत्र में छवि सुधारी भी जा सकती है | हम सभी को इस बात को समझने और स्वीकार करने की भी जरुरत है की सच्चाई सामने लाना तब जरुरी है जब बात जन मानस के बड़े पैमाने पर हितों की हो | अन्यथा की परिस्थिति में पत्रकारों की स्थिति आने वाले दिनों में और अधिक विषम देखने को मिल सकती है |
डॉ. अजय कुमार मिश्रा
drajaykrmishra@gmail.com