वेदना की पटरी से ,
बाहर निकलो तुम
पुष्प सा खिलो तुम !
मित्र मुस्कुराओं तुम !
घर गोष्ठी के तानों से,
टकराकर चट्टानों से ,
नद बन बहो तुम
सागर से मिलो तुम!
मित्र मुस्कुराओं तुम !
किरण को आसमां से ,
आस को अंतरात्मा से ,
खींचकर लाओ तुम
जग जहां छाओ तुम !
मित्र मुस्कुराओं तुम !
चांदनी को रजनी से ,
खुशियों को जननी से ,
थोड़ा सा चुराओ तुम
स्वप्नों को सजाओ तुम !
मित्र मुस्कुराओं तुम !
✍️ ज्योति नव्या श्री
रामगढ़ , झारखंड