जग में जिनके शिल्प बोलते है

जग में जिनके शिल्प बोलते है ।

पातक  समूहों   से  सर्वदा  दूर ,

वो  शांत   मितभाषी   होते  है ।


निर्भयतापूर्वक   हर  डगर  पर ,

विज्ञ गुण के  मोती बिखेरते  है ।

शब्दों की  चोट भूल  सारी उम्र,

अपने चरित्र को पवित्र रखते है ।


मरने  के  बाद  भी  शुद्ध  पूर्ण,

छाप  सर्वत्र विख्यात  करते है ।

समस्त गुणवानों के हिय उर में ,

सदा   सोते   जागते   रहते  है ।


कलाओं  के आधार  कौशल का ,

अनन्य  राग   से  गान   होते   है ।

सूर्य   और  चन्द्रमा   के   समान ,

स्वरूप स्वभाव सुशोभित होते है।


            ✍️ ज्योति नव्या श्री

               रामगढ़ , झारखंड