कविता हूँ

हाँ कविता हूं मैं।

मैं भावना हूं..

मैं राज हूं किसी के,

मन का और राजदार

     भी हूं मैं।

हाँ कविता हूं मैं।


मेरे अंदर संसार है

प्रेम का भंडार है

जीवन का हर पहलू,

मेरे अस्तित्व में समाता है

मस्तिष्क में उठती

विचारघारा हूं मैं..।

हाँ कविता हूं मैं।


ना जाने कितने रचनाकारों

को मैंने जन्म दिया..

उनके मस्तिष्क को

तरह तरह के विचारो

 से भर दिया ..

कमी नहीं प्रतिभाओं की

इस संसार में

सब ने मिलकर मुझे

हर बार एक नया रूप दिया।

रनाकारों के अंतर्मन से,

निकले हुए शब्दों की

  माला हूं मैं।

हाँ कविता हूं मैं।


कभी काँटो की सेज तो

कभी फूलों की माला हूं मैं

कभी वाल्मिकी की रामायण

तो कभी वेदव्यास की गीता 

     हूं मैं ।

हाँ कविता हूं मैं। 


                 --   सोनी पटेल

          मुजफ्फरपुर ,बिहार