मुक्तक

वो जो कहते थे तुम,बीन ना जी पायेंगे।

आजकल बिन हमारे,खुशी से वो जी रहे।

वो जो प्रतिक्षण कहते,हम तुम्हे सदा चाहेंगे।

आजकल बिन हमारे,वो बहुत खूश दिख रहें।


मुद्दतो बाद उनसे जब,आज मुलाकात हुई।

नयन से नयन मिलाकर,उनसे वही बात हुई।

सारे परित्याग का जड़,बस इक वही प्रेम था।

मौन होकर वो सारी मौन,भाषा में बात हुई।


जख्म जो भी थे पुराने सारे,फिर से नये हों गये।

जाते जाते वो दर्द गम पुनः,हमें तड़पा के गये।

क्या कहें प्रेम का मतलब,जीवन में होता हैं क्या।

छोड़ दो स्वतंत्र उसे जो,त्यागकर आज तन्हा गयें।


स्वरचित एवं मौलिक रचना

नाम:- प्रभात गौर 

पता:- नेवादा जंघई प्रयागराज उत्तर प्रदेश।