अनुरागी मन

रे अनुरागी मन मेरे

थोड़ा तो बदल जाओ,

मिथ्या इस संसार में

थोड़ा तो सम्भल जाओ।


बैर-भाव से परे हो तुम,

यहाँ के लिए न बने हो तुम,

हर पल खा जाते हो धोखा 

कैसा ये खेल अनोखा?


निज चित्त से जब बह

जाने दो भावों का दरिया,

कोई नहीं खास ये दुनियां है 

मतलब का जरिया।


तिक्त है आज अनुरागी मन,

नहीं सूझता कोई अवलंब,

मन के कोने दबा दिया अनुराग,

जाने क्यों आयी आवाज़...?


झूठ, फरेब दिखावे से 

तुम खुद को बच जाने दो,

है अनुरागमय यह जीवन,

मन अनुरागी बन जाने दो।


                  रीमा सिन्हा

            लखनऊ-उत्तर प्रदेश